शाजापुर जिले के मक्सी,रुलकी सहित अन्य गांवों व मंदसौर जिले में छोड फाड़ का आयोजन हुआ, जानिए क्या है यह परंपरा,,,

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गोवर्धन पूजा के दिन हर गांव में गाय का आकर्षक श्रंगार कर छोड़ फाड़ पशु खेल का आयोजन होता है, ढ़ोल ढमाकों के साथ गाय को छोड़ा खेलाया जाता है, बताया जाता है कि अगले साल के अच्छे भविष्य की कामना को लेकर इस खेल का आयोजन हर साल होता है।

जनसंवाद न्यूज़ शाजापुर/ मंदसौर (देवेन्द्र यादव)
दीपावली पर्व  को देश के कई स्थानों पर अलग-अलग तरीके से मनाने की परंपराएं हैं। मालवा इलाके में गोवर्धन पूजा के साथ कहीं पाड़ों की लड़ाई तो कहीं बैलगाड़ी की दौड़, तो कहीं हिंगोट जैसे प्रथाएं आज भी चलती हैं. ऐसे ही एक प्रथा शाजापुर, मंदसौर सहित सीमावर्ती इलाकों में देखने को मिलती है। यहां पड़वा यानी गोवर्धन पूजा के बाद हर गांव में छोड़ फाड़ के पशु खेल का एक आयोजन होता है। शाजापुर जिले के मक्सी के समीपवर्ती गांव रुलकी, बुढ़नपुर, रेहली, जानपुर, पलसावद, पीर उमरोद बड़वाड़ी, बिरगोद सहित अन्य गांवों में  देखने को मिलती है.वहीं मंदसौर जिले के शामगढ़, सुवासरा और गरोठ तह सीलों के करीब 5 दर्जन गांवों में गोवर्धन पूजा के दिन छोड़ फाड़ परंपरा का आयोजन किया गया। शामगढ़ के ग्राम प्रतापपुरा,किशोरपुरा, धलपट,कोटडा बुजुर्ग नारिया और बढ़िया अमरा में इस खेल का आयोजन हर साल होता है।
दरअसल, अंग्रेजी के Y अक्षर नुमा एक लकड़ी पर मरी हुई भैंस की खाल को मढ़ दिया जाता है, जिसे ग्रामीण छोड़ कहते हैं. इसके बाद खाल की छोड़ को गाय के सामने किया जाता है. यदि खेल के मैदान में उतरी गाय अपने सींग से इस छोड़ को फाड़ देती है, तो माना जाता है कि किसानों का अगला साल समृद्धि से निकलने वाला है। अगले साल के अच्छे भविष्य की कामना को लेकर इस खेल का आयोजन हर साल होता है.
रुलकी सहित कई गावों में निभाई जाती है यह परंपरा---
बेरछा के समीप गांव रुलकी,बुढ़नपुर, रेहली,जानपुर, पलसावद,  पीर उमरोद बड़वाड़ी, बिरगोद, मालिखेड़ी सहित अन्य गांवों में इस परंपरा का आयोजन हर साल होता है। गांव रुलकी के पूर्व सरपंच किशोर सिंह यादव, सौदान सिंह गुर्जर पटेल, छितरमल पाटीदार, इंदर परमार ने बताया कि वह बचपन से ही इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं और बुजुर्गों द्वारा बताई गई इस परंपरा से वह नए युवाओं को भी जोड़ रहे हैं। 

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